17 Jun 2016

मुहब्बत की कश्मकश कुछ ऐसी भी रही........


साहिल, 

उसकी आँखों का वो एक आंसू मुझे नींद न देने वाली कश्मकश में फंसा गया। 
नम आँखों के बीच उसका मुस्कुराता चेहरा न जाने कब अनकहा अनजाना सा एहसास दिला गया। 
यूँ तो ढूंढती थी जिसे में भीड़ भरी दुनिया में, वह चलते चलते मुझसे यूँ ही अचानक टकरा गया। 
कुछ न कह कर भी मुझे वो सबकुछ कह गया, नम आँखों का अफसाना वो यूँ ही बयां कर गया। 

रात भर जागकर ये सोचती रही कि उससे मुहब्बत करूँ या उसकी इबादत करूँ। 
उसके साथ आशियाना बनाऊं या अपने दिल में उसके नाम का आशियाना सजाऊँ। 
उसे दिल के पास रखूं या इस दिल को उसके नाम कर दूँ। 
तुम ही कहो साहिल कैसे अपने जज़्बात उसके सामने बयां करूँ ??

काश सुन पाता वो इन सांसो के नगमे को जिसमे उसके सुर समाते हैं। 
काश पढ़ पाता वो इन शब्दों को जो मुझे उसके और करीब जोड़ जाते है। 
काश समझ पाता वो अनकही आँखों का अफसाना जिसकी सरगम उसकी सांसो की धुन सुनाती है।
एक साहिल ही है उसका नाम, जिसका नाम लेकर साहिल की लहर मिट कर भी अमर हो जाती है...  


                                                                   तुम्हारी,    
                                                                          लहर  .......   

 
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