24 Feb 2019

आज फिर खोली ये ब्लॉग्गिंग की दुकान मैंने

शायद दिल फिर से टुटा है, शायद कोई अपना आज फिर से छूटा है
बहुत दिनों बाद खोली ये ब्लॉग्गिंग की दुकान मैंने
शायद अनजाने ही सही, आज ये दिल फिर से टुटा है

अनजान मुहब्बत से मुहब्बत करके दिल मेरा ये फिर से रोया है
नाकाम मुहब्बत की कामयाबी का सपना आज फिर टुटा है
शायद अनजाने ही सही, आज ये दिल फिर से टुटा है

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शिकवा किस से करे, शिकायत किस से
गवाह भी वो, मुज़रिम भी वो और मुंसिफ भी वो 
चलो आज फिर सजा खुद को सुना देते है
एक बार और ही सही आज फिर हम इस कटघरे में खड़े हो जाते है

गलतियां कुछ मैंने की और कुछ उसने, शायद सफरनामा कुछ गलतियों का है
दोष किसे दे ये सवाल तो बस सबूतों का है
उसने वो देखा जो उसे सही लगा मैंने वो जो मुझे
मांझरा तो बस नज़र के धोके का है

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मेहँदी के रंग जैसी थी तुम्हारी मुहब्बत, रंग लाल तो बहुत हुआ
चार दिन हुए थे रंग को निखरे, अब तो मेहँदी के ये बचे हुए छींटे भी हाथो को बदसूरत बना रहे है
चलो आ गया वो दिन भी अब छींटों पर भी बदसूरती का इलज़ाम नहीं लगा सकते
तेरी मुहब्बत की मेहँदी अब पूरी तरह उतर चुकी है




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